मुझे ये समझ नहीं आता की मीडिया आम आदमी को क्या मूर्ख समझती है? वैसे वो गलत नहीं समझती, कुछ हद तक तो बात सही भी है ,मीडिया ये जानती है की टीवी अधिकांश मध्य वर्ग का आदमी ही देखता है , तब विज्ञापन भी उसी लेवल के दिखाए जाते हैं ,क्या आप ने कभी मर्सिदिस का विज्ञापन टीवी पर देखा? क्या कारण है की , sony,Apple,के विज्ञापन बहुत कम टीवी पर दिखाए जाते हैं ,इनके विज्ञापन आप को इंग्लिश पेपर, इंग्लिश मग्जीन में ही दिखाई देंगे, डोमेक्स और रिन की सफेदी, निरमा की चमक के विज्ञापनों ही आप को प्राइम टाइम पर दिखाई देंगे , ये विज्ञापन अधिकांशतः इतने बचकाने होते हैं की आप को हंसी आ जायगी.

असल में ये सब कुछ भी नहीं है बस मनोविज्ञान है , जिससे मीडिया में माध्यम से भुनाया जाता है , वर्ना कौन मूर्ख होगा जो मात्र ०.७५ पैसे के कार्बोनेटेड वाटर को १० रुपये में खरीद कर पिएगा, लगभग हर जगह यही हाल है , अपने प्रोडक्ट को जनता के बीच रखिये और उस विज्ञापन का पैसा भी उन्ही से वसूल कीजिये , और जनता इतनी मूर्ख की उसके पास कुछ भी सोचने समझने की शक्ति ही नहीं है, जैसा जो बताया जाता है मान लेती है, कम्पनियों के घटिया से घटिया प्रोडक्ट भी विज्ञापनों की आड़ में चल जाते हैं.
ये धंधा इतना फल फूल रहा है की अगर कोई इस धंधे के बीच में आया तो उसको कैसे भी किसी भी तरह से रास्ते से हटा दिया जाता है,एक नए बदलाव के साथ आई एक कंपनी जिसने प्रोडक्ट को सीधे उपभोक्ता के हाथ में पहुचाने का विजन रखा, और वो थी speak asia. लेकिन बड़े बड़े उधोगपति मीडिया की तलवार ले कर उसके पीछे पड़ गए , आखिर विज्ञापनों के सहारे अपने घटिया प्रोडक्ट्स अब वो कैसे बेच पाएंगे, खत्म हो जायेगी मीडिया की दादा गिरी, अब आप ३२००० की lcd tv की जगह ३२००० में led tv ले सकते हैं, क्यों की यहाँ विज्ञापन का खर्चा लगभग न के बराबर है, अगर २० लाख लोगो का हाथ स्पीक एशिया के साथ न होता तो ये कंपनी भी मिट्टी में मिल गयी होती और ये विजन भी.
लेकिन एक नया YUG प्रारंभ होने वाला है और हम उसके साक्षी बनेंगे.
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