अन्ना कभी लोकपाल बिल के मसौदे को ले कर भूख हड़ताल पर बैठ जाते हैं, तो कभी रामलीला मैदान पर हुई घटना को ले कर, बेचारे बाबा रामदेव तो उनके अनुसरण में ही फंस गए, अन्ना को देख कर बाबा भी काला धन वापस लाने को मुद्दा बना कर बैठ गए धरने पर, बोले १२१ करोर लोग उनके साथ हैं, लेकिन रामलीला मैदान की घटना के बाद तो २१ लोग भी उनके साथ नहीं आये.
बाबा और अन्ना के क्रिया कलाप देख कर मुझे उस जिद्दी बच्चे के याद आती है जो खिलौना न मिलने पर खाना नहीं खाता है, उस बच्चे को सही और गलत से कोई मतलब नहीं, उसे तो बस खिलौना चाहिए, बेचारे माँ बाप अगर गरीब हों और आर्थिक स्तिथि ठीक न हों तो खिलौना भला कहा से खरीद के दे दें. पहले तो बेटे को सम्झातें हैं की बेटा मान जाओ, खाना खा लो, ये खिलौना अच्छा नहीं है, तुम्हे चोट लग जायगी, बच्चो के खेलने की चीज़ नहीं है, तुम गंदे बच्चे मत बनो खाना खा लो बेटा खाना खा लो,
लेकिन जब बच्चे को समझ में नहीं आता है, और वो अपनी भूख हड़ताल खत्म नहीं करता है तो माँ बाप उसकी पिटाई कर देते है और मार-मार कर उसे खाना खिला देते हैं, अधिकाँश मामलों में तो जिद्दी बच्चे मार से मान जाते हैं, जो नहीं मानते उन्हें दो दिन बाद ही ये एहसास होता है की मान जाते तो ही अच्छा था, अब खिलौना तो मिलना नहीं है और भूखे अलग से मरे जा रहें हैं.
लेकिन जब तक माँ बाप मनाने नहीं आयेंगे तब तब तक भला कैसे खाना खा लें, आखिर बच्चे का भी कोई अहं होता है. लेकिन माँ बाप तो अब एक बार मना चुके, अब दुबारा तो मनाने से रहे ,लेकिन तभी कही से चाचा आ जाते हैं , कहते हैं " मै करूँगा मध्यस्ता, मै तुद्वाऊंगा बच्चे की भूख हड़ताल " .बच्चा तो इसी इन्तेज़ार में बैठा था, चाचा जा कर बच्चे को जूस पिलाते हैं और इसी के साथ बच्चे की भूख हड़ताल टूट जाती है, बच्चे का अहं भी रह जाता है, और चाचा का प्यार सबको दिखाई देता है.
बाबा और अन्ना के क्रिया कलाप देख कर मुझे उस जिद्दी बच्चे के याद आती है जो खिलौना न मिलने पर खाना नहीं खाता है, उस बच्चे को सही और गलत से कोई मतलब नहीं, उसे तो बस खिलौना चाहिए, बेचारे माँ बाप अगर गरीब हों और आर्थिक स्तिथि ठीक न हों तो खिलौना भला कहा से खरीद के दे दें. पहले तो बेटे को सम्झातें हैं की बेटा मान जाओ, खाना खा लो, ये खिलौना अच्छा नहीं है, तुम्हे चोट लग जायगी, बच्चो के खेलने की चीज़ नहीं है, तुम गंदे बच्चे मत बनो खाना खा लो बेटा खाना खा लो,
लेकिन जब बच्चे को समझ में नहीं आता है, और वो अपनी भूख हड़ताल खत्म नहीं करता है तो माँ बाप उसकी पिटाई कर देते है और मार-मार कर उसे खाना खिला देते हैं, अधिकाँश मामलों में तो जिद्दी बच्चे मार से मान जाते हैं, जो नहीं मानते उन्हें दो दिन बाद ही ये एहसास होता है की मान जाते तो ही अच्छा था, अब खिलौना तो मिलना नहीं है और भूखे अलग से मरे जा रहें हैं.
लेकिन जब तक माँ बाप मनाने नहीं आयेंगे तब तब तक भला कैसे खाना खा लें, आखिर बच्चे का भी कोई अहं होता है. लेकिन माँ बाप तो अब एक बार मना चुके, अब दुबारा तो मनाने से रहे ,लेकिन तभी कही से चाचा आ जाते हैं , कहते हैं " मै करूँगा मध्यस्ता, मै तुद्वाऊंगा बच्चे की भूख हड़ताल " .बच्चा तो इसी इन्तेज़ार में बैठा था, चाचा जा कर बच्चे को जूस पिलाते हैं और इसी के साथ बच्चे की भूख हड़ताल टूट जाती है, बच्चे का अहं भी रह जाता है, और चाचा का प्यार सबको दिखाई देता है.