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शनिवार, 23 जुलाई 2011

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स्टार न्यूज़ की माफ़ी का क्या करें ?


हाई कोर्ट की हड्की के बाद आखिरकार स्टार न्यूज़ ने स्पीक एशिया के खिलाफ चलाये गए अपने झूठे दुष्प्रचार के लिए खेद व्यक्त किया है, लेकिन मुझे ये समझ नहीं आता है की हम इस खेद का क्या करें. उनके खेद को हम अगर रख भी लें तो हम उसका हमें क्या फायदा , खेद को काट कर अचार भी नहीं डाला जा सकता है, कुल मिलाकर खेद बिलकुल बेकार की चीज़ है, और अगर स्टार न्यूज़ ने खेद व्यक्त कर भी दिया तो वो कौन सी घटने वाली चीज़ है, जो कम हो जायगी.
      अगर हिटलर आ कर खेद व्यक्त करे की "उसने गैस चैम्बर्स में जितने भी यहूदियों की हत्या की है, वो उन सभी के लिए माफ मांगता है". अब आप को क्या लगता है की उन लाखों औरतों, बच्चों , पुरुषों ने जिन्होंने उन गैस चम्बेर्स के अंदर पीड़ा से भरी हुई अंतिम साँसे ली ,और जिन लोगो ने अपने बच्चो को अपनी आँखों के सामने तड़प कर मरते हुए देखा, हिटलर द्वारा केवल खेद व्यक्त कर देने से वो माफ़ी के योग्य हो गया ?
    स्टार न्यूज़ ने २० लाख लोगो के सपनो से खेला है, मै ऐसे कई लोगो को जानता हू जो पिछले  १ वर्ष से स्पीक एशिया की रोटी ही खा रहे थे ,ऐसे बेरोजगार युवको को जानता हू जिनकी आँखों में स्पीक एशिया ने सुनहरे भविष्य की एक चमक ला दी थी, स्टार न्यूज़ ने ऐसे लोगो में मूह से रोटी छीनी है, व्यापार की एक बिलकुल नयी अवधारणा को पगु बना दिया. माफ़ी मांग लेने से स्टार न्यूज़ के पाप कम नहीं हो जाते, बल्कि और बढ़ जाते हैं, क्यों की उसने केवल एक न्यूज़ के लिए माफ़ी मांगी है, उन हजारों न्यूज़ के लिए नहीं जो वो पिछले लगभग १० वर्षों से अपने व्यवसायिक लाभ के लिए प्रकाशित कर रहा है, और जिन न्यूज़ ने लाखो लोगो के जीवन में जहर घोला होगा, लेकिन वे बेचारे स्पीक एशिया की तरह मजबूती के साथ खड़े नहीं रह सके होंगे और हजारों ने तो चुपचाप शोषण का शिकार होना स्वीकार कर लिया होगा.
   कार्ट द्वारा स्टार न्यूज़ को कम से कम १ वर्ष के लिए प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, ये सही मायनों में एक कठोर और सही निर्णय होगा, ये अन्य न्यूज़ चैनल्स के लिए भी एक सबक होगा की ताकत का उपयोग जनहित में होना चाहिए, संहार में नहीं. स्टार न्यूज़ ने २० लाख लोगो के जीवन को प्रभावित किया है और इसे छोटी बात तो बिलकुल भी नहीं समझा जाना चाहिए

रविवार, 10 जुलाई 2011

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अब खाना टॉयलेट सीट पर रख कर खाइए

अभी कल मैंने डोमेक्स का एक नया विज्ञापन देखा , जिसमे डोमेक्स से साफ़ करने के बाद टॉयलेट इतना कीटाणु रहित हो गया की साफ़ करने वाली महिला ने उसे अपने हाथ से ऐसे रगडा जैसे विम बार के विज्ञापन में महिला बर्तन को साफ़ करने बाद रगडती है, और उसके हाथ में एक भी कीटाणु नहीं आया. ये तो सचमुच में हद हो गयी, वह दिन दूर नहीं जब कोई कंपनी ऐसा विज्ञपन दिखायेगी जिसमे उसका प्रोडक्ट इस्तेमाल करने भर से टॉयलेट सीट इतनी साफ़ हो जायगी की आप खाना भी उस पर परोस कर खा सकोगे.
        मुझे ये समझ नहीं आता की मीडिया आम आदमी को क्या मूर्ख समझती है? वैसे वो गलत नहीं समझती, कुछ हद तक तो बात सही भी है ,मीडिया ये जानती है की टीवी अधिकांश मध्य वर्ग का आदमी ही देखता है , तब विज्ञापन भी उसी लेवल के दिखाए जाते हैं ,क्या आप ने कभी मर्सिदिस का विज्ञापन टीवी पर देखा? क्या कारण है की , sony,Apple,के विज्ञापन बहुत कम टीवी पर दिखाए जाते हैं ,इनके विज्ञापन आप को इंग्लिश पेपर, इंग्लिश मग्जीन में ही दिखाई देंगे, डोमेक्स और रिन की सफेदी, निरमा की चमक के विज्ञापनों ही आप को प्राइम टाइम पर दिखाई देंगे , ये विज्ञापन अधिकांशतः इतने बचकाने होते हैं की आप को हंसी आ जायगी.
      मीडिया लोगो को मूर्ख समझ कर बस जहा चाहता है , और जैसा चाहता हांकता है, कोल्ड ड्रिंक्स के विज्ञापनों को ही देख लीजिए, कोई मतलब होता है उनका?  "तुमने अपने थम्सअप के लिए क्या क्या किया है " कोल्ड ड्रिंक न हो गयी सांस के रोगी की दवा हो गयी की अगर नहीं मिली तो मौत हो जायगी, और देखिये " डर के आंगे जीत है" अगर आप डीयू पियोगे तो आप पाहाड से भी कूद जाओगे , इतनी हिम्मत आ जायगी आपमें , कंपनी ये बताये की ऐसा उस में क्या मिला दिया है की आदमी का दिमाग सुन्न हो जायेगा और वो पहाड़ से भी बिना किसी भय के कूद जाएगा, और देखिये " यूनिवर्सिटी ऑफ फ्रेशोलोजी " अपनी गर्लफ्रेंड की बोरिंग बातो से कैसे बचें ? अगर आप sprite पी लें तो आप जान जाओगे की कैसे बचें,  वैसे आपको क्या लगता है आप जान जाओगे , मै तो नहीं जान पाया, क्या कम्पनी पर केस कर दूं? आप को क्या लगता है की ऐश्वर्य राय लक्स साबुन से नहाती है? वो जिस साबुन से नहाती है उसका आप ने नाम भी नहीं सुना होगा , आप ये भी जानते हो फिर भी लक्स खरीदते हो
        असल में ये सब कुछ भी नहीं है बस मनोविज्ञान है , जिससे मीडिया में माध्यम से भुनाया जाता है , वर्ना कौन मूर्ख होगा जो मात्र ०.७५ पैसे के कार्बोनेटेड वाटर को १० रुपये में खरीद कर पिएगा, लगभग हर जगह यही हाल है , अपने प्रोडक्ट को जनता के बीच रखिये और उस विज्ञापन का पैसा भी उन्ही से वसूल कीजिये , और जनता इतनी मूर्ख की उसके पास कुछ भी सोचने समझने की शक्ति ही नहीं है, जैसा जो बताया जाता है मान लेती है, कम्पनियों के घटिया से घटिया प्रोडक्ट भी विज्ञापनों की आड़ में चल जाते हैं.
         ये धंधा इतना फल फूल रहा है की अगर कोई इस धंधे के बीच में आया तो उसको कैसे भी किसी भी तरह से रास्ते से हटा दिया जाता है,एक नए बदलाव के साथ आई एक कंपनी जिसने प्रोडक्ट को सीधे उपभोक्ता के हाथ में पहुचाने का विजन रखा, और वो थी speak asia. लेकिन बड़े बड़े उधोगपति मीडिया की तलवार ले कर उसके पीछे पड़ गए , आखिर विज्ञापनों के सहारे अपने घटिया प्रोडक्ट्स अब वो कैसे बेच पाएंगे, खत्म हो जायेगी मीडिया की दादा गिरी, अब आप ३२००० की lcd tv की जगह ३२००० में led tv ले सकते हैं, क्यों की यहाँ विज्ञापन का खर्चा लगभग न के बराबर है, अगर २० लाख लोगो का हाथ स्पीक एशिया के साथ न होता तो ये कंपनी भी मिट्टी में मिल गयी होती और ये विजन भी.
       लेकिन एक नया YUG प्रारंभ होने वाला है और हम उसके साक्षी बनेंगे.

बुधवार, 15 जून 2011

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बाबा और अन्ना जिद्दी बच्चे

अन्ना कभी लोकपाल बिल के मसौदे को ले कर भूख हड़ताल पर बैठ जाते हैं, तो कभी रामलीला मैदान पर हुई घटना को ले कर, बेचारे बाबा रामदेव तो उनके अनुसरण में ही फंस गए, अन्ना को देख कर बाबा भी काला धन वापस लाने को मुद्दा बना कर बैठ गए धरने पर, बोले १२१ करोर लोग उनके साथ हैं, लेकिन रामलीला मैदान की घटना के बाद तो २१ लोग भी उनके साथ नहीं आये.
      बाबा और अन्ना के क्रिया कलाप देख कर मुझे उस जिद्दी बच्चे के याद आती है जो खिलौना न मिलने पर खाना नहीं खाता है, उस बच्चे को सही और गलत से कोई मतलब नहीं, उसे तो बस खिलौना चाहिए, बेचारे माँ बाप अगर गरीब हों और आर्थिक स्तिथि ठीक न हों तो खिलौना भला कहा से खरीद के दे दें. पहले तो बेटे को सम्झातें हैं की बेटा मान जाओ, खाना खा लो, ये खिलौना अच्छा नहीं है, तुम्हे चोट लग जायगी, बच्चो के खेलने की चीज़ नहीं है, तुम गंदे बच्चे मत बनो खाना खा लो बेटा खाना खा लो,
       लेकिन जब बच्चे को समझ में नहीं आता है, और वो अपनी भूख हड़ताल खत्म नहीं करता है तो माँ बाप उसकी पिटाई कर देते है और मार-मार कर उसे खाना खिला देते हैं, अधिकाँश मामलों में तो जिद्दी बच्चे मार से मान जाते हैं, जो नहीं मानते उन्हें दो दिन बाद ही ये एहसास होता है की मान जाते तो ही अच्छा था, अब खिलौना तो मिलना नहीं है और भूखे अलग से मरे जा रहें हैं.
      लेकिन जब तक माँ बाप मनाने नहीं आयेंगे तब तब तक भला कैसे खाना खा लें, आखिर बच्चे का भी कोई अहं होता है. लेकिन माँ बाप तो अब एक बार मना चुके, अब दुबारा तो मनाने से रहे ,लेकिन तभी कही से चाचा आ जाते हैं , कहते हैं " मै करूँगा मध्यस्ता, मै तुद्वाऊंगा बच्चे की भूख हड़ताल " .बच्चा तो इसी इन्तेज़ार में बैठा था, चाचा जा कर बच्चे को जूस पिलाते हैं और इसी के साथ बच्चे की भूख हड़ताल टूट जाती है, बच्चे का अहं भी रह जाता है, और चाचा का प्यार सबको दिखाई देता है.

शनिवार, 11 जून 2011

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ESPN Cricket वेबसाइट पर स्पीक एशिया का विज्ञापन

ESPN Cricket वेबसाइट पर स्पीक एशिया का विज्ञापन देखा जा सकता है
वेबसाइट का एड्रेस है 

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ध्यान रहे की जो असफल होने की हिम्मत जुटाते हैं, उनके सफल होने की उम्मीद भी है,लेकिन जो असफलता से बच जाते हैं वो सफलता से भी बच जाते हैं, ये दोनों चीज़े साथ साथ हैं - " ओशो "

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